🏛️ फेड की कहानी: जब राजनीति टकराई केंद्रीय बैंक से

24 जुलाई, 2025 – एक राजनीतिक ड्रामा जैसा दृश्य
यह कोई सामान्य दिन नहीं था फेडरल रिजर्व में। निर्माण स्थल पर हेलमेट पहनकर, कैमरों की चमक के बीच, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप फेड चेयर जेरोम पॉवेल के साथ खड़े थे। वे 2.5 बिलियन डॉलर की फेड मुख्यालय पुनर्निर्माण योजना को “बर्बादी” बताते हुए उस पर हमला कर रहे थे—जिसका खर्च अब बढ़कर 3.1 बिलियन डॉलर हो चुका है। यह 20 वर्षों में पहली बार था जब कोई राष्ट्रपति फेड का दौरा कर रहा था, लेकिन ट्रंप वहां तारीफ करने नहीं आए थे। उनका मकसद साफ था: ब्याज दरें तुरंत और तेजी से घटाओ। “हम हर साल लगभग एक ट्रिलियन डॉलर बचा सकते हैं,” ट्रंप ने दावा किया। “यह पागलपन है!” पॉवेल शांत भाव से खड़े रहे, लेकिन यह मंजर सिर्फ बयानबाजी नहीं था—यह केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता पर एक नई राजनीतिक चोट थी। 🔍 ट्रंप इतनी जोर क्यों दे रहे हैं? ट्रंप के दबाव के पीछे कारण केवल आर्थिक नहीं, राजनीतिक भी हैं: वित्तीय बोझ: ऊंची ब्याज दरों के चलते सरकारी कर्ज पर ब्याज भुगतान भी तेजी से बढ़ रहा है। ट्रंप का कहना है कि दरों में भारी कटौती से यह बोझ घटेगा। हाउसिंग बाजार में संकट: उनका दावा है कि महंगे लोन युवाओं के लिए घर खरीदना असंभव बना रहे हैं। राजनीतिक रणनीति: मीडिया बयान, आंकड़ों का लीक होना और हटाने की धमकी—यह सब एक रणनीति है दबाव बनाने की। 🛑 फेड क्यों रुक रहा है? फेडरल रिजर्व अभी भी सतर्क है, और इसके पीछे ये मुख्य कारण हैं: मुद्रास्फीति का खतरा: खाद्य और आवास लागत अभी भी ऊंची बनी हुई हैं। जल्दबाजी में कटौती से महंगाई फिर बढ़ सकती है। टैरिफ का असर: ट्रंप की नई टैरिफ नीतियों का असर समय लेकर दिखाई देगा, फेड पहले उसका परिणाम देखना चाहता है। संस्थान की स्वायत्तता: विशेषज्ञों का मानना है कि फेड की स्वतंत्रता को कमजोर करने से दीर्घकालिक दरें और बढ़ सकती हैं। हालांकि कुछ गवर्नर जैसे मिशेल बोमन और क्रिस्टोफर वॉलर संकेत दे चुके हैं कि अगर आर्थिक आंकड़े कमजोर हुए तो जुलाई में सीमित कटौती संभव है, लेकिन अधिकांश नीति निर्माता अभी “प्रतीक्षा और निगरानी” की रणनीति पर कायम हैं। ⚔️ शक्ति संघर्ष: ट्रंप बनाम पॉवेल यह सिर्फ मौद्रिक नीति की लड़ाई नहीं—यह एक अधिकार का संघर्ष है। ट्रंप पॉवेल को समय से पहले हटाने की बात कह चुके हैं और कुछ रिपब्लिकन नेता भी इसका समर्थन कर रहे हैं। लेकिन अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इससे बाजार में अविश्वास पैदा होगा। “ब्याज दरों की स्थिरता के बीच चेयर को हटाना अर्थव्यवस्था को झटका दे सकता है,” एक वॉल स्ट्रीट विश्लेषक कहते हैं। 📊 क्या दांव पर है? प्रभाव क्षेत्र प्रभाव बाजार भावनाएं डॉलर में गिरावट, सोने में उछाल—राजनीतिक हस्तक्षेप से अस्थिरता बढ़ती है। हाउसिंग और कर्ज ऊंची दरें घर खरीदारों और कर्ज लेने वालों पर बोझ बनाए रखती हैं। सरकारी बजट ऊंची दरों के कारण ब्याज भुगतान में वृद्धि जारी रहती है। संस्थानिक खतरा फेड की स्वतंत्रता कमजोर होने से दीर्घकालिक नुकसान हो सकता है। अगली बैठक (29–30 जुलाई): अधिकतर विश्लेषक उम्मीद कर रहे हैं कि दरें 4.25–4.50% पर स्थिर रहेंगी, लेकिन यदि डेटा कमजोर आता है तो सितंबर में कटौती संभव है। 💬 निष्कर्ष: मौद्रिक संतुलन की कसौटी फेड एक नाजुक संतुलन साध रहा है। एक तरफ राजनीतिक दबाव और आर्थिक तकलीफ, दूसरी ओर महंगाई का डर और संस्था की साख। ट्रंप ने दरों में कटौती को चुनावी मुद्दा बना लिया है, लेकिन फेड केवल आंकड़ों और दीर्घकालिक स्थिरता को देख रहा है। सवाल ये है: क्या फेड इस रस्साकशी में खुद को संतुलित रख पाएगा? जैसा कि इतिहास कहता है—केंद्रीय बैंक राजनीतिक तूफानों के आगे झुकते नहीं। 📌 अस्वीकरण: यह लेख केवल शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है। कृपया किसी भी निवेश निर्णय से पहले पंजीकृत वित्तीय सलाहकार से परामर्श लें।

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